रमाशंकर यादव 'विद्रोही' के विचारों का संग्रह

रमाशंकर विद्रोही के विचारों का संग्रह 

1. तुम्हारे मान लेने से पत्थर भगवान हो जाता है, लेकिन तुम्हारे मान लेने से पत्थर पैसा नहीं हो जाता।

रमाशंकर यादव 'विद्रोही'

2. “कुछ औरतों ने अपनी इच्छा से कूदकर जान दी थीं, ऐसा पुलिस के रिकार्ड में दर्ज है;
और कुछ औरतें अपनी इच्छा से चिता में जलकर मरी थीं, ऐसा धर्म की किताबों में लिखा हुआ है;
मै कवि हूं, कर्ता हूं, क्या जल्दी है;
मै एक दिन पुलिस और पुरोहित दोनों को एक साथ,औरतों की अदालत में तलब करूंगा;
और बीच की सारी अदालतों को मंसूख कर दूंगा” (औरतें, पृष्ठ 10)

3.“धर्म आखिर धर्म होता है, जो सुअरों को भगवान बना देता है;
चढ़ा देता है नागों के फन पर, गायों का थन;
धर्म की आज्ञा है कि लोग दबा रखे नाक, और महसूस करें कि भगवान गंदे में भी, गमकता है।”
विद्रोही की लड़ाई की लम्बी प्लॅानिंग थी “गुलामी के अंतिम हदों तक लड़ने” की।

4. “अब हम कहीं नहीं जायेंगे क्यूंकि, ठीक इसी तरह जब मैं कविता आपको सुना रहा हूं;
रात दिन अमरीकी मजदूर, महान साम्राज्य के लिए कब्र खोद रहा है;
और भारतीय मजदूर उसके पालतू चूहों के, बिलों में पानी भर रहा है;
एशिया से अफ्रीका तक जो घृणा की आग लगी है, वो बुझ नहीं सकती दोस्त;
क्योंकि वो आग औरत की जली हुई लाश की है, वो इंसान के बिखरी हुई हड्डियों की आग है।” (मुझे इस आग से बचाओ मेरे दोस्तों)

5. “मेरी पब्लिक ने मुझको हुक्म है दिया, कि चांद तारों को मैं नोंच कर फेंक दूं;
या कि जिनके घरों में अग्नि ही नहीं है, रोटियां उनकी सूरज पर मै सेंक दूं।
बात मेरी गर होती तो क्या बात थी, बात पब्लिक की है तो फिर मै क्या करूं;
मेरी हिम्मत नहीं है मेरे दोस्तों कि, अपनी पब्लिक का कोई हुक्म मेट दूं।”

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