कारोना के बाद का धार्मिक भारत?
मरते हुए लोगों का सर्वशक्तिशाली खुदा, गॉड और भगवान भी इस महामारी के सामने निर्बल रहा, जो उनकी धार्मिक किताबों में विपत्ति से बचाने वाला, दुनिया को बनाने वाला, सूर्य और पृथ्वी को सही जगह रखने वाला तथा पृथ्वी से कई गुना बड़े सूर्य को फल समझ कर खाने वाला बताया गया और भी ना जाने क्या क्या कोरकल्पित कहानियां गढ़ी गई हैं।
फिर भी लोगों की अंधभक्ति की आंखे नहीं खुलेगी, डर के मारे बंद पड़े भगवान के अड्डे फिर से खुल जाएंगे और लोग पहले से भी ज्यादा पूजा पाठ करेंगे लेकिन एक छण को ना सोचेंगे की अभी तक उस भगवान की पूजा क्यों किया जो मुसीबत में भाग खड़ा हुआ था
और तो और लोग ये तर्क भी देंगे कि ऐसा भगवान चाहता था, ये भगवान कर रहा है, इसमें किसी का बस नहीं ।
तो मेरा सवाल ये है कि
इनका भगवान इनको बचाता क्यों नहीं है ?
क्या इन्होंने भगवान की पूजा अर्चना में कोई कसर बाकी रखी थी ?
अगर मै कहूं कि जो भगवान को मानने में कोई कसर नहीं छोड़ी और जो कभी पूजा नहीं किया दोनों मर रहे हैं तो क्या कहोगे?
तुम कहोगे की पूजा पाठ से मन को शांति मिलती है।
तो मै कहूंगा की कोई मन की शांति के लिए पूजा करता है, कोई बेजुबान जानवरों की बलि चढ़ता है, कोई तो इंसानों के बच्चों की बलि और जीभ काट कर चढ़ता है,
ऐसे ही कुछ इलाकों में ऐसी भी प्रथा थी कि अपने पहले जन्मे बच्चे को नदी के हवाले कर दिया जाता था, क्या इन सभी पाखंडों को तुम मन कि शांति के नाम पर जायज ठहरा दोगे ?
क्या ऐसी घिनौनी प्रथा को सही मान लिया जाए ?
ऐसे ही अगर मै कहूं जब तुम्हे खुजली होती है तो उसे खुजलाने में मन को बड़ी शांती मिलती है, और अगर मन की शांति के लिए उसे खुजलाते रहोगे तो वो नासूर बन जाती है, इसलिए उसकी दवा कि जाती है। ठीक वैसे ही धर्म रूपी खुजली को दवा की जरूरत है जो पहले ही नासूर बन कर देश और समाज में अशांति, उन्माद, अतांकवाद, दंगे, करवा रहा है और गरीबों मजलूमों पर ज़ुल्म का कारण बन रहा है।
देशों की सरकारें भी यही चाहती हैं कि देश के लोग भगवान, मंदिर, मस्जिद और धर्म के नाम पर जब तक अंधभक्त बने रहेंगे तब तक उनकी धार्मिक भावनाओं को आगे करके हम शासन करते रहेंगे क्यों की कोई भी सवाल ही नहीं उठाएगा, अगर कोई हिम्मत भी करेगा तो यही अंधभक्त उसको धर्मविरोधी और देशद्रोही घोषित करने में देर नहीं लगाएंगे, जिससे वह खुद ही उंगली नीचे कर लेगा।