शास्त्रों की कड़वी हकीकत ?


शास्त्रों की कड़वी हकीकत?

ब शास्त्रों ने आत्म वंचना और अकर्मण्यता की घुट्टी पिला रखी है तो जगद्गुरु का दम भरने वाला देश अगर पश्चिम का मोहताज नहीं होगा तो क्या होगा?


शास्त्र पढ़ना उन पर विचार करना उनका उपयोग करना अलग बात है और मोह बस उन पर विचार किए बिना उन पर अंधविश्वास करना अलग बात है। शास्त्र किसी जमाने के लोगों के अनुभव चिंतन और मनन के परिणाम हैं। कुछ शास्त्र अपने स्वार्थ के कारण भी लिखे गए हैं , कुछ अधूरे विचार के कारण लिखे गए हैं, कुछ में न्याय की प्रवाह नहीं की गई है। किसी पुराने जमाने के लिए उपयोगी थे परंतु आज उपयोगी नहीं है।

व्यक्ति और समाज के लिए घातक

ऐसी अवस्था में शास्त्र के नाम में ही श्रद्धा करना विवेक से काम न लेना परिणामों की उपेक्षा करना शास्त्रों की अंधभक्ति है जो व्यक्ति व समाज के लिए घातक है
एक संप्रदाय की शास्त्रों के प्रति अंधभक्ति सिर्फ उसी संप्रदाय के लिए होती है दूसरा संप्रदाय उसे पसंद नहीं करेगा तथा दूसरे संप्रदाय के शास्त्र की निंदा करेगा।

शास्त्र न्यायधीश नहीं गवाह है, न्यायाधीश आप हैं। गवाहों की बात न्यायधीश को अवश्य सुननी चाहिए, परंतु गवाही फैसला नहीं है।


साधारण मनोवृति

मनुष्य की साधारण मनोवृति ऐसी है कि वह अपनी रुचि, अपनी आदत, अपने स्वार्थ के अनुकूल बातें जल्दी मान लेता है और इसके विरुद्ध बात को अपनी असमर्थता पर छोड़ देता है।
स्वार्थ की बात, रुचि की बात यदि शास्त्रों में लिखी हो उनका किसी तरह का समर्थन हो तो शास्त्र की दुहाई देकर उन बुराइयों को जल्दी पकड़ लेगा।
इसलिए यह कहना उचित नहीं है कि शास्त्र में 10 बातें तो अच्छी लिखी हैं एक दो बातें बुरी हुई तो क्या हुआ ।इसे लीटर भर दूध और तोला भर विष ही समझना चाहिए क्योंकि दूध की अपेक्षा विश का असर ज्यादा है।

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नए शास्त्रों का विकास

आज हर विषय के शास्त्रों का विकास हो रहा है विज्ञान, अर्थशास्त्र, इतिहास, कानून, चिकित्सा, तकनीक सब बदलते और विकसित हो रहे हैं।
 पुरानी चीजों के मोह का त्याग कर हर एक में सुधार किया जा रहा है कोई यह नहीं सोचता कि 1 दिन पुरानी चीजें काम आई थी इसलिए उसम चिपके रहना चाहिए।


विज्ञान के विशिष्ट आविष्कार भारत में क्यों नहीं?

आप सोचते होंगे भारत एक दिन विश्व गुरु था तब पश्चिम के लोग जंगली युग में थे पर बाद में भारत पिछड़ गया
विज्ञान के सब अविष्कार पश्चिम के वैज्ञानिकों ने ही किए और भारत के विद्वान कुछ ना कर सके।
परंतु भारत के लोग कैसे करते?

यहां के शास्त्र इन बातों से भरे पड़े थे कि सारी रिद्धि सिद्धिया, मंत्रजाप नामजप ध्यान से मिलती हैं, हिमालय से गंगा नीचे उतरी 
तो शिव और विष्णु का जप करने से बड़े-बड़े दिव्य शास्त्र मिले।
लंबी तपस्या से संसार भर की सर्वज्ञता मिली।
और भी ना जाने क्या क्या कहानियां शास्त्रों में भरी पड़ी हैं
ऐसी अवस्था में किसे गरज थी कि भौतिक प्रयोग करें प्रयोगशाला में खोलें प्रयोगों में जीवन खपाए।


व्यभिचार को बढ़ावा

साधू लोग मंत्र, पूजा, यज्ञ आदि का ढोंग कर बच्चे पैदा करने की बात करते हैं। इससे व्यभिचार होता है। पैसे की बर्बादी होती है। इसमें कसूर जनता का नहीं शास्त्रों का है। उदाहरण के लिए दशरथ के चारों पुत्र यज्ञ और फल खाने से पैदा हुए थे।


जातिगत भेदभाव

शास्त्रों में ही कहा गया है कि स्वयं ब्रम्हा ने है वर्ण को बनाया जो ऊंच नीच के जाति भेद बनाए।


बलिप्रथा

विभिन्न प्रकार की देवियों को खुश करने के लिए निर्दोष जीवो और बच्चों की बलि जैसी अंधविश्वास का वर्णन भी शास्त्रों में ही मिलता है जो अभी तक ग्रामीण और अनपढ़ समाज में विद्यमान है।



अंधश्रद्धा और पूर्वाग्रह छोड़कर खुले दिमाग से धर्म शास्त्रों को पढ़ाजाए तो इनकी असलियत से परिचय हो जाएगा

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