धर्म और स्त्री


धर्मों में स्त्री को देवी का दर्जा देने के बाद भी अभी तक उसे पुरुष के बराबर का हक भी नहीं मिल पाया है आइए जानते हैं वजह क्या है?

नियतिवाद, असुरक्षा पर निर्भरता आदि कारणों से स्त्रियों की धर्म के प्रति आस्था बहुत ज्यादा होती है, परंतु धर्म ने स्त्रियों का शोषण ही किया हिंदू धर्म में तमाम देवियों जैसे दुर्गा, काली, पार्वती, सीता, लक्ष्मी आदि का जिक्र तो मिलता है परंतु स्त्री को कभी समानता का दर्जा नहीं दिया गया ।
इस्लाम की तरह हिंदू धर्म में स्त्री पर तरह तरह के प्रतिबंध तो नहीं हैं फिर भी हिंदू धर्म में स्त्री पितृसत्ता के दायरे में ही सिमटी रही। धर्म और धार्मिक देवियों ने उसे एक उपभोग की वस्तु ही बने रहने पर विवश कर दिया। स्त्री दलित वर्गों की तरह ही शोषित रही, जहां दलित स्त्रियां सामाजिक और घरेलू शोषण उत्पीड़न का शिकार रही, वही सबसे उच्च वर्ण यानी ब्राह्मणों की स्त्रियों पर भी तरह तरह के प्रतिबंध थे जिनका आधार धर्म था।
धर्म के कारण स्त्री को सतीप्रथा, बाल विवाह, दहेज उत्पीड़न जैसी अनेकानेक बुराइयों और समस्याओं का सामना करना पड़ा। स्त्री एक सच्ची सर्वहारा रही है परंतु उसका सर्वहारा वर्ग से जुड़ाव रोकने के लिए अनेक देवियों की कल्पना की गई और उसे शोषक वर्ग से जोड़ने की कोशिश की गई और जोड़ा भी गया। धार्मिक पुस्तकों में जहां देवियां स्त्री थी वहीं यथार्थ में स्त्री को पशु तुल्य समझा जाता था।  

तुलसी की रामायण में एक चौपाई है 
ढोल, गवार, शुद्र, पशु, नारी।
सकल ताड़ना के अधिकारी।।
 अर्थात स्त्री, गवार, जानवर और शूद्र सिर्फ प्रताड़ना के योग्य हैं।

 बड़ी जातियों में स्त्री को सिर्फ संतानोत्पत्ति और कामवासना का माध्यम और पैर की जूती समझा जाता था। मूर्ख पुरुष से भी उत्पन्न वारिश काफी समझदार पैदा हो सकता है क्योंकि उसमें भी स्त्री का ही 75 परसेंट तक योगदान होता है। फिर भी स्त्रियों को हेय दृष्टि से देखा जाता है । प्रायः बिगड़ैल बच्चों को सुधारने के लिए परिवार जन उनका विवाह इसलिए करते हैं, क्योंकि उसकी भावी पत्नी विवाह के बाद अपने पति पर नियंत्रण रख सकेगी, फिर भी स्त्री ताड़न की अधिकारी क्यों? क्योंकि हमारा  हिंदू धर्म स्त्री को केवल बच्चा देने की मशीन समझता है या ज्यादा से ज्यादा बच्चे की देखरेख करने वाली स्त्री। इस पर भी आप स्त्री से क्या उम्मीद करें कि वह निष्कृट होने के बाद भी परिवार की सेवा करें। इसी कारण धर्म द्वारा समय-समय पर उसे बांधे रखने के लिए धार्मिक षड्यंत्र रचता है ताकि वह परिवार से बंधे।

विश्व भर में कोई भी धर्म हो उस का सबसे बड़ा पहला अहम नियम है महिलाओं और बच्चियों का गला घोटना और उन पर प्रतिबंध लगाना, क्योंकि महिलाएं ही बच्चों को जन्म देकर उनका लालन-पालन करती हैं इसलिए यदि महिलाओं पर धर्म का रंग चढ़ा दिया जाए तो धर्म की आस्था परिवार में बची रहेगी।

बीसवीं सदी तक महिलाओं को तो कोई आर्थिक राजनैतिक तथा किसी भी प्रकार का व्यावहारिक या कानूनी अधिकार नहीं दिया गया था। जब तक विवाह ना हो तब तक उन्हें माता-पिता, विवाह के बाद पति की संपत्ति माना जाता था। इस अधिकार को लागू रखने में भी घर की बड़ी बूढ़ी महिलाएं, परिवार, कुल, पति यानी पुरुषों से समानता ना दिलवाने के लिए लगी रहती हैं। वह चाहती हैं कि चाहे उनकी बेटी हो या बहू उन्हें किसी ना किसी पुरुष के नीचे दबे रहना चाहिए।
सभी धर्म महिलाओं के प्रति क्या रुख रखते हैं आइए देखते हैं।

मुस्लिम धर्म में
1 महिलाएं पुरुषों के साथ काम ना करें।

2 महिलाएं केवल उसी जगह काम कर सकती हैं जहां पर महिला कर्मचारी अधिक हो।

3 महिलाओं को किसी भी प्रकार की यात्रा नहीं करनी चाहिए उनके लिए पर्यटन तो बिल्कुल निषेध है वह केवल धार्मिक यात्रा पर ही जा सकती हैं।
4 महिलाओं को तलाक देने का अधिकार नहीं है
पर्दे में रहना उनके लिए जरूरी है।

5 सिर से पैर तक ढक कर रहना ही धर्म आदेश है।


हिन्दू धर्म में
1 महिलाओं की क्या वेश भूषा होगी इस पर भी धर्म ने प्रतिबंध लगा रखे हैं।

2 महिलाएं किस दिन क्या कार्य नहीं कर सकती उन पर भी विभिन्न आदेश हैं।

3 महिलाओं को अपनी संपत्ति रखने पर भी पाबंदी है
महिलाएं क्या पढ़े, कितनी पढ़े, कैसे पढ़े, किस जगह पढ़े सब पर रोक-टोक हैं।

4 पति की मृत्यु पर पत्नी को जिंदा ही, पति के साथ जला दिया जाए।

5 विवाह होने पर उसके कपड़ों श्रंगार वेश भूषा पर भी धर्म का अधिकार है सिंदूर, बिंदी, चूड़ा, चूड़ी, कड़ा, मंगलसूत्र, अंगूठी इत्यादि पहनना आवश्यक ही नहीं बिल्कुल जरूरी है। यानी इन सभी सुहाग चिन्हों का प्रयोग आवश्यक है ताकि मानसिक रूप से गुलामी की पताका फैलाती रहे।

6 महिलाओं को कब नहाना, कैसे नहाना, कब तेल डालना, नाखून काटना इस पर भी धर्म आदेश हैं।

7 हिंदू धर्म के अनुसार पुत्री कष्टप्रद दुख दायिनी होती है, लड़की को पिता के हृदय को चीरने वाली कहा गया है
स्त्रियां पुरुषों को बुरे रास्ते पर डालती हैं।

8 विधवा से पुनर्विवाह पर रोक, केवल वेश्या बन कर जीवन बिता सकती हैं।

9 चाणक्य के अनुसार झूठ, दुस्साहस,  मूर्खता, लालच और निर्दयता स्त्रियों के स्वाभाविक गुण है।


ईसाई धर्म में

1 महिलाओं को चुप रहकर पुरुषों के आधिपत्य को स्वीकारना होगा।

2 पुरुषों पर हुकुम चलाने की अनुमति नहीं है
सभी महिलाओं को सिर ढकना होगा बगैर सिर ढक के रहना धर्म की अवहेलना है।

3 सभी महिलाएं पुरुषों के लिए बनी है पुरुष महिलाओं के लिए नहीं।

इन सब धर्मों के आदेश से एक बात तो साफ है कि सभी धर्म नारी के प्रति द्वेष की भावना रखते हैं इसलिए सभी धर्म अपनी नीतियों का निर्ममता से पालन करने के लिए बर्बरता का भी प्रयोग करते हैं। ऐसे नियम पुरुषों के लिए क्यों नहीं? यह सोचना आवश्यक है क्यों नहीं उन पर किसी भी प्रकार की पाबंदी है? वह चाहे कितनी पत्नियां रखें, व्यभिचार करें, हत्या करें, बलात्कार करें उन पर कोई पाबंदी नहीं क्यों ? 

क्या केवल इसलिए नहीं, कि धर्म के सारे संचालक पुरुष हैं और वे अपने धंधे की स्वतंत्रता खोना नहीं चाहते तो क्या इसलिए ही उन्होंने धर्म का आवरण पहनकर केवल महिलाओं का शोषण करने का षड्यंत्र नहीं किया?

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